पृथ्वीराज विजय महाकाव्य के दशम सर्ग के उत्तरार्ध के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की कुल 16 पत्नियां थीं।
1- मंडोर के चंद्रसेन की पुत्री चंन्द्र कंवर पडिहारी
2- आबू के राव आल्हण पंवार की पुत्री इच्छनी पंवारी
3- मण्डोर के राव नाहड़ प्रतिहार की पुत्री जतन कंवर
4- देलवाड़ा के रामसिंह सोलंकी की पुत्री प्रताप कंवर
5- नागौर के दाहिमा राजपूतों की पुत्री सूरज कंवर
6- गौड़ राजकुमारी ज्ञान कंवर
7- यादव राजकुमारी यादवी पद्मावती
8- गहलोत राजकुमारी कंवर दे
9- बड़ गूजरों की राजकुमारी नंद कंवर
10- आमेर नरेश पंजन की राजकुमारी जस कंवर कछवाही
11- राठौर तेजसिंह की पुत्री शशिव्रता
12- देवास की सोलंकी राजकुमारी चांद कंवर
13- बैस राजा उदय सिंह की पुत्री रतन कंवर
14- सोलंकिया राजकुमारी सूरज कंवर
15- प्रताप सिंह मकवाड़ी की पुत्री गूजरी
16- और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता गाहडवाल
मतलब कि हर जाति की उनकी एक पत्नी थी और कुछ तो एक ही नाम की दो दो थीं।
जिस जयचंद को आजतक “गद्दार” कह कर लगभग गद्दार का पर्यायवाची बना दिया गया है, वह जयचंद और कोई नहीं बल्कि कन्नौज के राजा थे और संयोगिता उनकी बेटी थीं
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अपनी पुत्री संयोगिता के विवाह हेतु कन्नौज के राजा जयचन्द ने स्वयंवर का आयोजन किया था, जिसमें कई राजा-महाराजाओं को निमंत्रित किया गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान से मन-मुटाव नाराजगी के कारण उनको निमंत्रण नहीं भिजवाया गया, पृथ्वीराज चौहान के 15 पत्नी वैसे ही पहले से थीं तो कोई भी बाप ऐसे राजा को अपनी बेटी के स्वयंवर में क्यूं बुलाएगा?
मगर पृथ्वीराज चौहान जी कहां रुकने वाले थे, वीर जो थे और वैसे भी पृथ्वीराज चौहान संयोगिता की एक झलक तस्वीर में देख चुके थे और बस 16 वीं पत्नी बनाने पर अमादा थे और वीरता अंदर से हिलोरे मार रही थी।
उन्होंने क्या किया कि अपनी उपस्थिति के रूप में स्वयंवर के द्वारपाल के पास अपनी प्रतिमा लगवा दी। स्वयंवर का कार्यक्रम शुरू हुआ तो संयोगिता को कोई भी पसंद नहीं आया।
वह एक-एक कर आगे बढ़ती रही और अंत में उसने पृथ्वीराज राज चौहान की प्रतिमा के गले में ही माला डाल दी। यह देख पिता जयचंद को काफी गुस्सा आया किन्तु द्वारपाल के साथ में तब पृथ्वीराज भी खड़े हुए थे।
गुस्सा आना स्वभाविक था, पिता जो थे
मगर वीर पृथ्वीराज चौहान सभा में उपस्थित हुए और राजा जयचंद से उनकी पुत्री का हाथ माँगा। किन्तु वह राजी नहीं हुए इसलिए पृथ्वीराज-संयोगिता को उठाकर दिल्ली भगा ले गये।
किसी के घर से सरेआम महफिल से उसकी बेटी भगा ले जाना कितना बड़ा अपमान है खुद सोचिए? फिर जयचंद तो कन्नौज के सम्राट थे।
स्मरण रखिए पृथ्वीराज एक राज्य का शासक था लेकिन जयचंद के पास पूरा साम्राज्य था। पृथ्वीराज महाराज थे और जयचंद सम्राट। उस वक्त अखण्ड भारत की राजधानी कन्नौज ही हुआ करती थी।
एक बात और जयचंद और पृथ्वीराज मौसेरे भाई थे… ये सारी लड़ाई सिर्फ सत्ता और राज्य की थी…
और सबसे बड़ी बात पृथ्वीराज रासो के इतिहास को हजारी प्रसाद द्विवेदी तक ने नकार दिया था क्योंकि इसमें 90 साल के अंतर से बातें लिखी गईं हैं …