Sunday, April 28, 2024

भारत में आया पहला मंकीपॉक्स का मामला, जनिए इसके लक्षण, इलाज और कितनी खतरनाक है ये बीमारी

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दुनिया के 71 देशों में फैल चुका मंकीपॉक्स अब भारत में भी दस्तक दे चुका है. केरल के तिरुवनंतपुरम में विदेश से लौटे एक शख्स में मंकीपॉक्स के लक्षण दिखे हैं. उसके सैम्पल को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में जांच के लिए भेजा गया है. 

केरल के राज्य स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने बताया कि लक्षण दिखने के बाद मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मंकीपॉक्स का संदिग्ध मरीज तीन दिन पहले यूएई से लौटा है, जिसके सैंपल जांच के लिए पुणे भेज दिया गया है. आपको बता दें कि मंकीपॉक्स एक जूनोटिक डिजीज है, जो कि लगभग चिकनपॉक्स की तरह होती है. लेकिन यह चिकनपॉक्स नहीं होती है. अगर आप मंकीपॉक्स की पहचान करना चाहते हैं, तो मंकीपॉक्स के लक्षणों के बारे में जरूर जानकारी लें.

अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल के मुताबिक, मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है, जो मंकीपॉक्स वायरस के संक्रमण से होती है. ये वायरस उसी वैरियोला वायरस फैमिली (Variola Virus) का हिस्सा है, जिससे चेचक होता है. मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक जैसे ही होते हैं. बेहद कम मामलों में मंकीपॉक्स घातक साबित होता है.

क्या है मंकीपॉक्स?

– अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) के मुताबिक, पहली बार ये बीमारी 1958 में सामने आई थी. तब रिसर्च के लिए रखे गए बंदरों में ये संक्रमण मिला था. इसलिए इसका नाम मंकीपॉक्स रखा गया है. इन बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण दिखे थे. 

 विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में सामने आया था. तब कॉन्गो के रहने वाले एक 9 साल के बच्चे में ये संक्रमण मिला था. 1970 के बाद 11 अफ्रीकी देशों में इंसानों के मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के मामले सामने आए थे.

– दुनिया में मंकीपॉक्स का संक्रमण अफ्रीका से फैला है. 2003 में अमेरिका में मंकीपॉक्स के मामले सामने आए थे. सितंबर 2018 में इजरायल और ब्रिटेन में मंकीपॉक्स के मामले सामने आए थे. मई 2019 में सिंगापुर में भी नाइजीरिया की यात्रा कर लौटे लोगों में मंकीपॉक्स की पुष्टि हुई थी.

मंकीपॉक्स फैलता कैसे है?

– मंकीपॉक्स किसी संक्रमित जानवर के खून, उसके शरीर का पसीना या कोई और तरल पदार्थ या उसके घावों के सीधे संपर्क में आने से फैलता है. 

– अफ्रीका में गिलहरियों और चूहों के भी मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के सबूत मिले हैं. अधपका मांस या संक्रमित जानवर के दूसरे पशु उत्पादों के सेवन से भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

– इंसान से इंसान में वायरस के फैलने के मामले अब तक बेहद कम सामने आए हैं. हालांकि, संक्रमित इंसान को छूने या उसके संपर्क में आने से संक्रमण फैल सकता है. इतना ही नहीं, प्लेसेंटा के जरिए मां से अन्यजन्मे बच्चे को मंकीपॉक्स भी हो सकता है.

– मंकीपॉक्स यौन संबंध बनाने से भी फैल सकता है. समलैंगिक और बायसेक्शुअल लोगों को इससे संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है. 

– WHO के मुताबिक, हाल ही में जिन देशों में मंकीपॉक्स के मामले सामने आए हैं, उनमें से कइयों में संक्रमण यौन संबंध बनाने से फैला है. 

– CDC के मुताबिक, अगर आप किसी मंकीपॉक्स संक्रमित से यौन संबंध बनाते हैं, तो आपको भी संक्रमण हो सकता है. संक्रमित के गले लगना, किस करना और यहां तक कि फेस-टू-फेस कॉन्टैक्ट बनाने से भी संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.

क्या हैं इसके लक्षण?

– मंकीपॉक्स वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड 6 से 13 दिन तक होता है. कई बार 5 से 21 दिन तक का भी हो सकता है. इन्क्यूबेशन पीरियड का मतलब ये होता है कि संक्रमित होने के बाद लक्षण दिखने में कितने दिन लगे.

 संक्रमित होने के पांच दिन के भीतर बुखार, तेज सिरदर्द, सूजन, पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं. मंकीपॉक्स शुरुआत में चिकनपॉक्स, या चेचक जैसा दिखता है.

– बुखार होने के एक से तीन दिन बाद त्वचा पर इसका असर दिखना शुरू होता है. शरीर पर दाने निकल आते हैं. हाथ-पैर, हथेलियों, पैरों के तलवों और चेहरे पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं. ये दाने घाव जैसे दिखते हैं और खुद सूखकर गिर जाते हैं. 

– शरीर पर उठने वाले इन दानों की संख्या कुछ से लेकर हजारों तक हो सकती है. अगर संक्रमण गंभीर हो जाता है तो ये दाने तब तक ठीक नहीं होते, जब तक त्वचा ढीली न हो जाए.

कितनी खतरनाक है ये बीमारी?

– विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मंकीपॉक्स से संक्रमित हर 10वें व्यक्ति की मौत हो सकती है. मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के 2 से 4 हफ्ते बाद लक्षण धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं. 

– छोटे बच्चों में गंभीर संक्रमण होने का खतरा बना रहता है. हालांकि, कई बार ये मरीज के स्वास्थ्य और उसकी जटिलताओं पर भी निर्भर करता है. 

जंगल के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों में मंकीपॉक्स का खतरा ज्यादा बना रहता है. ऐसे लोगों में asymptomatic संक्रमण भी हो सकता है.

– चेचक के खत्म होने के बाद इस बीमारी का वैक्सीनेशन भी बंद हो गया है. इसलिए 40 से 50 साल कम उम्र के लोगों को मंकीपॉक्स का खतरा ज्यादा बना रहता है. 

क्या है इसका इलाज

– विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, अभी मंकीपॉक्स का कोई ठोस इलाज मौजूद नहीं है. हालांकि, चेचक की वैक्सीन मंकीपॉक्स के संक्रमण के खिलाफ 85% तक असरदार साबित हुई है.

– लेकिन अभी चेचक की वैक्सीन भी आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है. 2019 में चेचक और मंकीपॉक्स को रोकने के लिए एक वैक्सीन को मंजूरी दी गई थी, लेकिन वो भी अभी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं है.

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