इस किताब से पहले दर्शन मेरे लिए समझ में ना आने वाली चीज थी लेकिन इस किताब के साथ सफर किया तो पता चला कि हमने कितनी देर कर दी…इसे पढ़ने में…दुनिया को और बेहतर तरीके से समझने में…किताब थोड़ी मोटी है इसलिए पढ़ने में काफी टाइम लगा और हम जैसे पढ़ते हैं उसमें टाइम लगना स्वाभाविक है हाइलाइटर लेकर बैठने की आदत है जिससे अच्छी लाइनों को हाइलाइट किया जा सके…चलिए किताब पर आते हैं वैसे तो इस किताब में कई ऐसी बाते हैं जिन्हें आपको बताने का मन है लेकिन सब लिखना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि पोस्ट लंबी हो जाएगी और आप बिना पढ़े निकल जाएंगे…इसलिए कुछ उदाहरण से समझिए
हम चौंकना भूल गए हैं कोई भी हैरतअंगेज चीज देखने के बाद भी चौंक नहीं पाते…बच्चों की तरह हर नई चीज देखकर खुश नहीं होते…दर्शन इसी तरफ लौटने का नाम है
एक दिन सबेरे मम्मी पापा और तीन साल का छोटा टॉमस नाश्ता कर रहे हैं.थोड़ी देर बाद मम्मी उठकर सिंक की तरफ जाती हैं और पापा ऊपर उड़ने लगते हैं और छत के नीचे हवा में तैरते हैं जबकि टॉमस उन्हें देख रहा है सोचो, तब टॉमस ने क्या कहा होगा? शायद बह अपने पापा की ओर इशारा करके कहता है…पापा उड़ रहे हैं. टॉमस निश्चित ही इस द्श्य को देखकर चकित होगा लेकिन वह तो रोज ही चकित हो जाता है क्योंकि पापा तो हर रोज अजीब अजीब हरकतें करते हैं तो अब नाश्ते की मेज पर थोड़ी सी उड़ान में क्या नया है।हर दिन पापा एक अजीब मशीन द्वारा दाड़ी बनाते हैं कभी छत पर चढ़कर एंटीना घुमाते हैं या गाड़ी का बोनट खोल उसमें अपना सिर डाल देते हैं और जब बाहर निकालते हैं तो मुंह पर कालिख लगी होती है।
अब मम्मी की बारी है वह टॉमस की आवाज सुनकर तेजी से मुड़ती हैं…अब तुम सोचो पापा को उड़ते देख उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
मुरब्बे का मर्तबान उनके हाथ से छूट जाता है और वह डरकर चीखती हैं…और संभवता उन्हें डॉक्टर की जरूरत पड़े…अब तुम सोचो टॉमस और उनकी मां की प्रतिक्रिया अलग अलग क्यों है?
इसका सबका संबध आदत से है…मम्मी ने यही सीखा है कि लोग उड़ नहीं सकते जबकि टॉमस को अभी यह जानना है वह अभी यह नहीं जानता कि आप दुनिया में क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते।
अफसोस तो यही है कि हम जैसे जैसे बड़े होते हैं न केवल गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के ही आदी होते जाते हैं बल्कि दुनिया हमारे लिए आदत बन जाती है…ऐसा लगता है कि बड़े होने की लालसा में हम दिनिया के प्रति आश्चर्य करने की क्षमता खोते जाते हैं…और दार्शनिक यही क्षमता फिर से स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
आनंद का मतलब सिर्फ इंद्रिय सुख ही नहीं होता- जैसे उदाहरण के लिए चॉकलेट खाना बल्कि मित्रता और कला-प्रेम जीवन के लिए अहम मूल्य हो सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने विश्व मंच पर एक बार कहा था कि…ज्यादातर धर्म कहते हैं कि जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते वे नास्तिक हैं…हम कहते हैं कि एक व्यक्ति जो स्वंय में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है।अपनी आत्मा की भव्यता में विश्वास ना करने को ही हम नास्तकिता कहते हैं।
अजीब तरह के सवालों के जवाब तो कोई भी नहीं दे सकता
हां, ठीक है लेकिन हम तो उन्हें पूछना तक नहीं सीख रहे हैं।
सोफी, हम खुद को इतिहास के ज्वारभाटे में साफ नहीं हो जाने देंगे.हम में से कुछ को ठहरने की जरूरत है जिससे नदी के किनारों पर जो बच गया है उसे उठा सकें और संभालकर रख लें।
जब आप बात करते हैं तो हर चीज उदास और गंभीर लगती है
”जीवन दोनों ही चीज है, उदास और गंभीर. हमें इस अद्भुत संसार में आने दिया जाता है.हम एक दूसरे मिलते हैं अभिवादन करते हैं कुछ क्षणों के लिए एक साथ घूमते-फिरते हैं फिर एक दूसरे को खो देते हैं और गायब हो जाते हैं उसी अचानक और बेतुके ढंग से जिस तरह हम आए थे”
कभी-कभी मैं स्वंय से पूछता हूं कि यदि लोग थोड़ा सा बेहतर ढंग से सोचने लगें तो क्या युद्ध से बचा जा सकता है शायद हिंसा रोकने का सबसे बढ़िया तरीका होगा दर्शनशास्त्र का एक छोटा सा कोर्स कर लेना या दर्शन की कोई किताब पढ़ लेना
मैंने अपने सारे जीवन में काले कौए देखे हैं इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि सफेद कौए जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती. एक दार्शनिक और एक वैज्ञानिक, दोनों का ही ये काम है कि वे सफेद कौए को पाने की संभावना को खारिज ना करें।
यह जरूरी है कि हम पुरानी पीढ़ी के जीवन मूल्यों के प्रति आलोचनात्मक बने रहें.
अब ज्यादा सोचिए मत और जल्दी ये किताब पढ़ डालिए…