किसान आंदोलन एक साल से ज्यादा चला.इस एक साल के दौरान हमारी टीम ने हर मौके पर गाजीपुर बॉर्डर समेत दूसरे सभी बॉर्डर पर जाकर आंदोलन को कवर किया और किसानों की बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की और अब जब सरकार और किसानों के बीच सहमति बन चुकी है और सरकार ने तीनों कृषि कानून वापिस ले लिए हैं और किसान अपने अपने घर लौट रहे हैं…तब मैंने सोचा क्यों ना एक बार गाजीपुर बॉर्डर जाकर देखा जाए कि अब वहां पर कैसा माहौल है?
जाते-जाते भी लोगों का भला कर गए अन्नदाता
जब हम गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे तब वहां मौजूद किसानों की संख्या कम थी और जो थे वो भी अपना सामान टैक्ट्रर -ट्रालियों में भर रहे थे क्योंकि उन्हें जाने की जल्दी थी और जल्दी हो भी क्यों ना आखिर एक साल से ज्यादा वक्त अपने घर,अपनी जमीन से दूर जो बिताया है।लेकिन सबसे अलग और अच्छी बात जो मुझे वहां लगी वो ये थी कि किसानों ने जाते हुए भी आसपास रहने वाले लोगों के बारे में सोचा।किसान एक साल तक जिन बांस के घरों में रहे अब वो गाजीपुर बॉर्डर के आसपास रहने वाले गरीब लोगों के काम आएंगे। इस दौरान ना जाने कितने ही गरीब लोग बांस ले जाते हुए दिखे जिनसे जब पूछा गया कि इनका क्या करोगे तो बोले हमारे घर की छत टपकती है उसे सही करेंगे।
मीडिया के दुष्प्रचार का अब भी डर है
घर लौटते किसानों को अब भी डर है कि उनके जाने के बाद कहीं कोई दारू की बोतल या कुछ और डालकर फोटो ना खींच ले इसलिए किसान आंदोलन की जगह को बिल्कुल साफ सुथरा करके जा रहे हैं और इसकी वीडियो भी बनाई जा रही है…ये सब देखकर एक पत्रकार के तौर पर शर्मिंदगी महसूस हुई कि मीडिया में जनता का भरोसा कितना कम हुआ है लेकिन अगले ही पल ये सोचकर दिल को तसल्ली हुई कि चलो हम उस मीडिया का हिस्सा नहीं हैं और किसानों को उस जगह की साफ सफाई करते हुए देखकर अच्छा लगा जिस पर उन्होंने एक साल बिताया और उस एक साल में सर्दी,गर्मी,बरसात सब देख लिया।
हमेशा तिरंगे को सबसे ऊपर रखा
इस आंदोलन के दौरान किसानों को खालिस्तानी,देशद्रोही हुड़दंगी…ना जाने क्या क्या कहा गया लेकिन किसानों ने कभी खुद को तिरंगे से अलग नहीं किया..अब जब किसान अपने घरों को लौट गए हैं फिर भी तिरंगा उनकी देशभक्ति को दिखाने के लिए काफी है एक तस्वीर में आपको किसान संगठनों के झंडे दिखाई देंगे लेकिन तिरंगा उनमें सबसे ऊपर लहरा रहा है।
जब केरला से आए शख्स से लंबी बात हुई
इस आंदोलन ने पूरे देश को एकजुट करने का काम किया है। लोग देश के दूर दराज के इलाकों से किसानों के समर्थन में दिल्ली पहुंचे उन प्रदेशों से भी आए जहां हिंदी नहीं बोली जाती लेकिन किसानों की भावनाएं अच्छे से पढ़ी जाती हैं तभी केरला से आए ये शख्स टूटी-फूटी हिंदी में किसानों के समर्थन की बात कर रहे थे। इनसे उत्तर की राजनीति और दक्षिण की राजनीति में फर्क पर लंबी बातचीत हुई।
सेवा के मामले में सरदार से असरदार कोई नहीं
जब हम जाते हुए किसानों और उनके उजड़ते आशियाने की तस्वीरें ले रहे थे तब हमें किसी ने पीछे से आवाज दी…’बाऊ जी चाय पी लो’ घूमकर देखा तो एक सरदार जी खड़े थे…उन्होंने फिर कहा चाय पी लो आखिरी है,आज रात यहां से जा रहे हैं।मैंने मुस्कराकर मना किया और आगे बढ़ गए लेकिन फिर सोचा कि इस चाय के बुलावे में कितना अपनापन था,कितना सेवाभाव था हम फिर लौटे और उनसे गुजारिश की…चाय तो नहीं पीएंगे लेकिन आपसे थोड़ी देर बात करेंगे…उन्होंने मुस्करा बिठा लिया फिर हमने काफी देर तक बातें की उनके एक साल के अनुभव को सुना…इस बातचीत के दौरान ये एहसास हुआ कि लोग अपने धर्म को बचाने के नाम पर एक दूसरे से लड़ते रहते हैं और एक ये कौम है जिसने सेवा को ही अपना धर्म मान लिया है।जब बातें खत्म हुईं तो याद के लिए मैंने एक तस्वीर खिंचवाने की गुजारिश की जिसके वो सहज ही तैयार हो गए।
कुल मिलाकर ये किसान आंदोलन ऐतिहासिक है इसने देश को एक करने का काम किया है जितना भाईचारा इस आंदोलन में दिखा वैसा सदभाव पहले किसी आंदोलन में नहीं देखा…हम उम्मीद करते हैं ये सदभाव ऐसा ही बना रहे…तो अलविदा मेरे अन्नदाताओं…अब गांव में मिलेंगे…
Great
This is my first comment
nice