आजाद भारत में सबसे अधिक अगर किसी की व्यक्तिगत आलोचना हुई है तो वो हैं नेहरु… अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में नेहरु को खूब गालियां देकर कोसा गया… नेहरु को छोड़िये हम लोगों ने तो नेहरु के परिवार को भी नहीं छोड़ा… देश में अगर कोई मुसीबत आई तो उसका जिम्मेदार हमेशा नेहरु को ठहराया गया… सारा ठीकरा नेहरु पर फोड़ दिया गया… इल्जामों का ढ़ेर ऐसा इकट्ठा हुआ कि पहाड़ बने तो आसमान छू जाए…
नेहरु को गुजरे आज 58 साल हो गए, लेकिन जैसे-जैसे साल गुजरे, नेहरु की आलोचना में कमी नहीं आई बल्कि वह और ही बढ़ती चली गई… देश में चुनाव हों और पार्टियां नेहरु पर दोष ना मढ़े तब तक तो चुनाव पूरा ही नहीं लगता… खैर व्यक्तिगत न सही पर आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री के रुप में नेहरु के बारे में जान तो लीजिए…
1947 का वो साल था समझ नहीं आ रहा था कि खुशी मनाएं या दुख… एक तरफ तो हमें सांस लेने के लिए आजाद हवा मिल रही थी पर एक तरफ हमसे हमारा ही भाई पाकिस्तान अलग हो रहा था… भाई को खोने का गम क्या होता है शायद भारत मां से बेहतर कोई नहीं समझेगा… अंग्रेजों ने 200 सालों तक हमें लूटा… एक तरह से कहिये बर्बाद कर दिया था… आखिर में तो जो बचा वो भी हमसे ले गए… ऐसे में कमान सौंपी गई नेहरु के हाथ में… बापू और सरदार पटेल के आशीर्वाद से देश तरक्की का रास्ता तैयार कर रहा… लेकिन आजाद हुए एक साल भी नहीं बीता 1948 में बापू को हमसे छीन लिया गया… पूरी दुनिया को बापू अनाथ करके चले गए… दुनिया महात्मा के जाने से शोक में डूब गई…
महात्मा के बिना नेहरु और सरदार पटेल अकेले थे
‘बाप छोड़कर चला जाए तो बच्चे क्या करें’ उस वक्त यही हाल नेहरु और पटेल का हुआ… पूरा देश अपनी डबडबाती नजरों से नेहरु और पटेल की तरफ देख रहा था… पटेल नेहरु से बड़े थे, छोटा भाई जब टूटता है तो बड़े भाई की जिम्मेदारी होती है कि उसको संभाले… पटेल ने नेहरु का हाथ अपने हाथ में पकड़ा और कहा होगा ‘भाई तुम अकेले नहीं हो हम सब तुम्हारे साथ हैं…’ नेहरु ने भी छोटे भाई की भूमिका निभाते हुए पटेल को कभी निराश नहीं किया…
समय ने एक बार फिर अपनी रफ्तार भरी… पटेल ने अपनी क्षमता और कुशल नेतृत्व से भारत के टुकड़े होने से बचा लिए… पटेल जहां कमजोर पड़े नेहरु ने छोटा भाई बनकर हाथ पकड़ा, जहां नेहरु कमजोर पड़े पटेल बड़े भाई के रुप में चट्टान बनकर खड़े हुए…
लेकिन साल 1950 एक और बदकिस्मती लाया
पटेल भी हमें छोड़कर चले गए… पहले पिता समान बापू का साया सिर से हटा… अब चट्टान सा बड़ा भाई भी नहीं रहा… शायद पटेल बापू के जाने का दुख सहन नहीं कर पाए इसीलिए तो 2 साल बाद ही बापू के पास चले गए… पर नेहरु अकेले पड़ गए… बाप और भाई दो साल के अंतर में चले जाएं इसका सितम जिसने झेला हो वही बता सकता है… नेहरु के आंसू शायद अकेले में झरने की तरह बहते होंगे पर नेहरु तो नेहरु थे… करोडों की उम्मीद थे, आंसू पोछे और फिर देश की बागडोर संभाली…
जब नेहरु ने दुनिया में तीसरा गुट बनाया
नेहरू के नेतृत्व में भारत ने गुटनिरपेक्षता नीति का नेतृत्व किया जब पूरी दुनिया दो धड़ों में बंटी थी, जहाँ अमरीका और उसके समर्थक मित्र एक तरफ वहीं रूस और उसके समर्थक मित्र एक तरफ थे, अब इन गुटों में शामिल होने का मतलब था की सीधे युद्ध में शामिल होना… पर नेहरू ये नहीं चाहते थे, लिहाजा उन्होंने मिस्र, इंडोनेशिया, चेकोस्लोवाकिया, घाना को लेकर अपनी एक अलग गुटनिरपेक्ष दुनिया बनाकर लोगों को हैरान कर दिया…
इज़राइल का कभी समर्थन नहीं पर फिर भी हमारा दोस्त…
इज़राइल और फलस्तीन में हमेशा ज़मीन के लिए विवाद रहा यहां तक इज़राइल ने फलस्तीन की जमीन हड़प ली लेकिन भारत ने कभी भी इज़राइल का समर्थन नहीं किया…. इतना कुछ होने के बाबजूद भी इज़राइल हमेशा हमारा घनिष्ठ मित्र देश रहा, ये सब नेहरू की कूटनीति का ही प्रभाव था…
नेहरु को कोसने से पहले…
• पंचवर्षीय योजना शुरू की जो देश और सामाजिक विकास के लिए ज़रूरी था
• उन्होंने आईआईटी(IIT), आईआईएम(IIM) बनाए ताकि शिक्षा के लिए विदेशों में निर्भर न रहें…
• नागल बांध (Nangal Dam), रिहंद बांध (Rihand Dam), बोकारो(Bokaro) की स्थापना की जिससे मानव जाति को खाने-पीने की कोई दिक्कत न आए
• नेहरू ने हिंदी चीनी का नारा दिया ताकि पड़ोसी देश चीन से हमारी दोस्ती बनी रहे, लेकिन चीन ने नेहरू की उस दोस्ती का भरोसा तोड़ दिया… 1962 में चीन ने भारत के पीठ पीछे छुरा घोपा इस युद्ध में हम बुरी तरह हार गए, लेकिन हमारे सैनिकों ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए, दुश्मन सैनिकों के दाँत खट्टे कर दिए थे… इस हार के बाद नेहरू की खूब आलोचना हुई… (Indo-china war)
नेहरू आलोचना से डरते नहीं थे, लेकिन चीन के विश्वासघात और इस युद्ध की हार ने नेहरू को तोड़ दिया था…
सुर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाया गया गाना (ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में ) इस गाने के बोल सुनकर ही नेहरू फूट फूट के रो पड़े, शायद इस हार को पचाना उनके बस से बाहर था… (Lata mangeshkar with nehru)
इसलिए युद्ध के दो साल बाद ही 1964 में नेहरू भी हमे बीच भंवर में छोड़ कर चले गए , नेहरू का जाना भारत की बची-खुची आत्मा का चले जाना हुआ, पूरे भारत की आखों में समुद्र उफान पे था क्या दोस्त क्या दुश्मन सभी के आँसू बह रहे थे, पूरी दुनिया ने भारत की आंखों में इतने आंसू सिर्फ गांधी के जाने के बाद देखे थे…
नेहरू के बाद भारत को ऐसा नेतृत्व अभी तक नही मिला शायद ही नेहरू जैसा नेता पूरी दुनिया के पटल में हो…
भविष्य का तो नहीं पता पर हमें शायद ही नेहरू जैसा करिश्माई नेतृत्व अब दुबारा कभी मिले… खैर आप खूब आलोचना कीजिए… जमकर धज्जियां उड़ाइए…
लेकिन बस एक पल खुद को रोकिए… सोचिए… नेहरू की जगह खुद को रख कर देखिए… और महसूस कीजिए क्या आसान है नेहरू होना… क्या पता आपकी नफरत प्यार में बदल जाए…
नेहरू होना आसान नहीं है लेकिन नेहरू जैसी सोच होना जरूरी बहुत है।