Friday, May 10, 2024

Agnipath Scheme क्या है, सेना में कौन और कैसे बन सकेंगे Agniveer, जानें सब कुछ 

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देशभर में अग्निपथ प्रवेश योजना का जमकर विरोध हो रहा है… इस कॉन्सेप्ट को टूर ऑफ ड्यूटी (TOD) भी कहते हैं जिसमें 17.5 साल से लेकर 21 साल तक के युवा अप्लाई कर सकेगें…  सेना में इन युवाओं को 4 साल के लिए भर्ती किया जाएगा, जिसमें 6 महीने ट्रेनिंग दी जाएगी और इसके बाद साढ़े तीन साल उन्हें नौकरी पर रखा जाएगा… वेतन की शुरुआत 30000 रुपये से होगी जो चौथे साल के आखिर तक 40000 रु. हो जाएगी… कुल मिलाकर सेवामुक्त होने तक सैनिकों को 10 से 12 लाख रुपये मिलेंगे जो पूरी तरह टैक्स फ्री होंगे… लेकिन सवाल सबसे बड़ा ये है कि चार साल बाद क्या? हालांकि सरकार कह रही है कि युवाओं को बाद में कॉरपोरेट सेक्टर सहित अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे… लेकिन सरकार का पिछला रवैया देखकर युवाओं को सरकार की इस बात पर भरोसा नहीं हो पा रहा है…

किसी भी देश की आर्मी का स्ट्रक्चर दो चीजों से मिलकर बनता है… इसके ढ़ांचे में किसी भी तरह का बदलाव करना मतलब सुरक्षा के साथ-साथ समाज पर भी इसका असर पड़ता है… ये हकीकत है कि आर्मड फोर्सेस में सुधार और बदलाव की तो लम्बे समय से जरूरत थी. बड़े सुधारों पर अपनी शंका जाहिर करने से पहले हमेशा सुधार की जरूरतों का आकलन करना चाहिए. लेकिन कभी-कभी यथास्थिति को बनाए रखने का हमारा पूर्वाग्रह ऐसा करने नहीं देता.

सरकार की अग्निपथ के बारे में यह कहना होगा कि यह सुधार का राजनीतिक भ्रम पैदा करने के बारे में उतना ही है, जितना कि यह सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा करने के बारे में है। इसलिए सुधार की इस गुगली को बहुत सावधानी से समझने की जरूरत है.

ये समझना मुश्किल नहीं है कि सेना में इस सुधार की जरूरत अर्थव्यवस्था के पूरी तरह धराशायी होने के कारण पड़ी है. मौजूदा NDA सरकार ने ही लोकसभा चुनाव में सशस्त्र बलों के पेंशन के मुद्दे को उठाया था. नतीजा ये हुआ कि वन रैंक वन पेंशन रिफॉर्म देश पर एक बड़ा वित्तीय बोझ बन गया जबकि अर्थव्यवस्था की हालत बदतर होती गई… इससे ये सीख मिलती है कि लोकलुभावने मुद्दों के कारण संस्थानों को लम्बे समय तक भारी लागत उठानी पड़ती है. हालांकि कभी-कभी राजकोषीय संकट के बहाने रचनात्मक सुधार किया जाता है, लेकिन इस मामले मे ऐसा कुछ नहीं दिख रहा. हां, ये जरूर है कि जब चीन और दूसरे देशों में पावर के लिए कंपटीशन चल रहा है, तब देश ने ये योजना लाकर संकेत दिया गया है कि हमारे पास बड़े खेल के लिए वित्तीय संसाधन नहीं हैं.

दूसरी बात ये कि आर्मड फोर्सेस को सच में दो मूलभूत बदलावों की आवश्यकता थी. पहला- कर्मचारियों पर निर्भरता कम करके टेक्नोलॉजी की तरफ बढ़ना. दूसरा— शॉर्ट टर्म के सैनिकों की नियुक्ति. ये दोनों ही लक्ष्य अच्छे हैं, लेकिन क्या अग्निपथ जैसी योजना इन लक्ष्यों को हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है? टेक्नोलॉजी बनाम सैनिकों का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिसे सरकार को अपनी शर्तों पर निपटाना चाहिए. इसके लिए पेंशन बिल में कटौती की शर्त को बीच में लाने की जरूरत नहीं है. ये सच है कि तकनीक जमीन पर सैनिकों की जगह ले सकती है. अफगानिस्तान से लेकर यूक्रेन तक हर युद्ध इसका उदाहरण है. हालांकि एक सवाल ये भी है कि कहीं अग्निपथ के जरिए होने वाली भर्तियों से सेना के पास अनुभवहीन सैनिकों की फौज तो नहीं हो जाएगी जैसा कि लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर ने अपने लेख ‘टूर ऑफ ड्यूटी: द किंडरगार्टन आर्मी’ में बताया है?

एक जानकारी आपको और देते चलें कि सरकार की तरफ से लायी गई योजना कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है… दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी इस तरह की योजना लाई गई थी… दरअसल उस वक्त ब्रिटिश वायुसेना के पायलटों को बहुत दवाब झेलना पड़ रहा था… इसलिए ब्रिटिश वायुसेना टूर ऑफ ड्यूटी का कॉंसेप्ट लेकर आई… मौजूदा दौर में अमेरिका में भी इस तरह की ही योजनाएं चल रहीं हैं…

अब आखिर में समाज पर पड़ने वाले प्रभाव की बात कर लेते हैं. ये सच है कि सेना में भर्ती का अनुभव युवाओं के लिए शानदार है क्योंकि कोई भी सिविलियन नौकरी सेना जैसी नौकरी के उद्देश्य या उसकी तरह काम करने की स्थिति से मेल नहीं खाती है, इसलिए इस योजना से बड़ी संख्या में युवाओं को हताशा घेरेगी. दूसरी तरफ अगर युवाओं के लिए 4 साल की यह नौकरी एक अच्छा अनुभव नहीं साबित होती है, तो मामला सिर्फ प्रोफेशनल होकर रह जाएगा लेकिन तब भी आप संभावित रूप से बहुत सारे युवाओं को सेना के लिए तैयार कर रहे हैं। वो भी सैन्य अनुशासन के भविष्य की सुरक्षा के बिना… कुल मिलाकर बात इतनी है कि सरकार की तरफ से अगर इसे अच्छी तरह से संभाला नहीं गया, तो शायद ये योजना आग से खेलना साबित हो सकती है…

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